ईद उल अजहा (क़ुरबानी ईद) हर मुसलमान के लिए एक अहम मौका होता है ।।।
कुछ लोगो की गलतफहमी है कि इस्लाम की स्थापना मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने की,… ये बात वो बिना लेखक की फालतु किताब वाले बोलेंगे जिन्हे इस्लाम के नाम से हमेशा डराया जाता रहा हो, जबकि वो लोग असली इतिहास
से काफी दूर हैं ।।। – @[156344474474186:]
हमारे आका मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से पहले बहुत से नबी आये जिनमे एक नबी थे जिनका नाम इब्राहीम था,… उनको लगातार सपना आता था कि कोई महबूब चीज की कुर्बानी दी जाए ।।।
*हजरत इब्राहीम अलैहि. लगातार अपनी सोच के मुताबिक कुर्बानी करते रहे,… मगर ये ख्वाब उन्हे लगातार आता रहा,.. आखिर मे उन्होने सोचा कि इस दुनिया मे उन्हे सबसे प्यारी चीज है उनकी औलाद हजरत इस्माईल (अलैहि सलाम) ,…
*हजरत इब्राहीम अलैहि. लगातार अपनी सोच के मुताबिक कुर्बानी करते रहे,… मगर ये ख्वाब उन्हे लगातार आता रहा,.. आखिर मे उन्होने सोचा कि इस दुनिया मे उन्हे सबसे प्यारी चीज है उनकी औलाद हजरत इस्माईल (अलैहि सलाम) ,…
*अब ये अपनी औलाद इस्माईल को लेकर अल्लाह के हुक्म पर कुर्बान करने चल दिए,.. इब्राहीम (अलैहि सलाम) ने इस्माईल को उल्टा लिटा दिया और खुद की आँख पर पट्टी बांध ली,.. जब इब्राहीम (अलैहि सलाम) बेटे की गर्दन पर छुरी चलाने लगे तो अल्लाह के हुक्म से एक दुम्बा बीच मे आ गया जो जिबह हो गया ।।। और हजरत इब्राहीम की कुर्बानी को इतना कुबूल किया गया कि कयामत तक आने वालो पर हलाल जानवर की कुर्बानी का हुक्म दिया गया ।।।
*अल्लाह रब्बुल इज्ज़त कभी भी किसी का नुकसान नही चाहता मगर आजमाता जरुर है,… इसी कुर्बानी के अमल को हम आज भी करते हैं,..
और इसे रिश्तेदारों में , गरीबो में , जरुरतमंदो में भी बांटा जाता है ।।।
*कुर्बानी का जानवर ज़िबह करते वक्त ये दुआ पढते है – “बिस्मिल्लाहे वल्लाहुअकबर”
और इसे रिश्तेदारों में , गरीबो में , जरुरतमंदो में भी बांटा जाता है ।।।
*कुर्बानी का जानवर ज़िबह करते वक्त ये दुआ पढते है – “बिस्मिल्लाहे वल्लाहुअकबर”