Qabrprasti - Jahannam ka khula rasta // Qabr prati aur ISLAM (Hindi)

--: कब्रपरस्ती – जहन्नम का खुला रास्ता :--
कब्रपरस्ती शिर्क का एक ऐसा दरवाज़ा हैं जिसे बर्रासगीर(हिन्दुस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश और दिगर कई मुल्क) मे एक इस्लामी रस्म व रिवाज़ समझ कर इस तरह किया जाता हैं जैसे ये दीन ए इस्लाम का एक अहम रुक्न हो| जिहालत की इंतहा तो तब होती हैं जब इसे करने वाले इसे बिना कुरान और हदीस के दलील के इस अकीदत के साथ करते हैं जैसे ये फ़र्ज़ ऐन हो और इस काम मे घर की औरतो समेत कब्रो पर जाकर मन्नत मुरादे मांगते हैं|

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि0 से रिवायत हैं के कौमे नूह नेक और अच्छे लोग थे जब वो मर गये तो उनके पैरोकार उनकी कब्रो पर मुजावर बन कर बैठ गये, फ़िर इनकी तस्वीर और बुत बनाये, फ़िर कुछ ज़माने और गुज़रने के बाद इनकी कब्रो की परस्तिश शुरु कर दी| (सही बुखारी)
कौम इब्राहिम की मिसाल कुछ ऐसी ही हैं| अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं-
यकीनन हमने इससे पहले इब्राहिम को इसकी समझबूझ बख्शी थी और हम इसके अहवाल से बखूबी वाकिफ़ थे|, जबकि इसने (इब्राहिम) ने अपने बाप और अपनी कौम से कहा, ये मूर्तिया जिन के तुम मुजावर बने बैठे हो क्या हैं? सबने जवाब दिया के हमने अपने बाप-दादा को इन्ही की इबादत करते पाया| (सूरह अंबिया 21/51-53)
कौम मूसा के वक्त भी एक कौम थी जिस ने अपनी इबादत के लिये मूर्तिया बना रखी थी| अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं-
और हमने बनी ईसराईल को जब दरीया पार कराया तो इन का गुज़र ऐसे लोगो के पास से हुआ जो बुतो की इबादत करते थे| कहने लगे – ऐ मूसा जिस तरह इन के कुछ माबूद हैं आप हमारे लिये भी माबूद बना दे| आप ने फ़रमाया के यकीनन तुम लोगो मे बड़ी जिहालत हैं|(सूरह आराफ़ 7/138)
नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम के ज़माने मे अंबिया कि तसवीर, बुज़ुर्गो की कब्रो, दरख्तो तक की इबादत होती थी| इब्ने जरीर रह0 ने अफ़रायेतुम अल लात व उज़ा की तफ़्सीर ब्यान करते हुये ज़िक्र किया हैं कुफ़्फ़ारे मक्का जिस लात नाम के बुत की इबादत करते थे वो एक नेक आदमी था जो हाजीयो को सत्तू भिगोकर पिलाया करता था| जब वो मर गया तो लोग उसे नेक स्वालेह समझ कर उसकी कब्र पर मुजावर बन कर बैठ गये और ज़माने दर जमाने बाद उसका बुत बना कर उसकी इबादत शुरु कर दी|
इब्ने कसीर ने अपनी तफ़्सीर मे लिखते हैं जमाने जिहालत मे कुफ़्फ़ारे मक्का लात की इबादत करते थे और इसी से अपनी हाजते तलब करते थे| लात एक सफ़ेद रंग का पत्थर था जिस पर मकान बना हुआ था, पर्दे लटके हुए थे और वहां मुजावर रहते थे और इस के चारो तरफ़ हद मुकरर्र थी| (इब्ने कसीर)
अज़ा मक्का और तायफ़ के दरम्यान एक दरख्त था जिस पर एक बड़ी शानदार इमारत बनी हुई थी और इस मे पर्दे लटके हुए थे| फ़तह मक्का के बाद इन सब कब्रो, तकियो को गिरा दिया गया और दरख्तो को कटवा दिया गया| (सही बुखारी)
हज़रत आयशा रज़ि0 से रिवायत हैं के – कबीला अन्सार के कुछ लोग मनात के नाम का एहराम बांधते थे| मनात बुत था जो मक्का और मदीना के दरम्यान रखा हुआ था| इस्लाम लाने के बाद इन लोगो ने कहा या रसूलल्लाह सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम हम मनात की ताज़ीम के लिये सफ़ा और मरवा के दरम्यान सई नही किया करते थे| (सहीह बुखारी)
ज़ात अनवात एक बेरी का दरख्त था जिस के पास मुशरिक एतकाफ़ करते थे और तबर्रुक के लिये इस पर असलहा लटकाते थे| इस्लाम आने के बाद जब सहाबा रज़ि0 ने अल्लाह के रसूल सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम से अपने लिये ज़ाते अनवात का मुतालबा किया तो नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया – मुझे इस ज़ात की कसम जिस के हाथ मे मेरी जान हैं! तुमने तो आज वही बात कह दी जो बनी ईसराईल ने मूसा अलै0 से कही थी के ऐ मूसा! हमारे लिये भी इन लोगो के माबूद जैसा माबूद बना दे, मूसा अलै0 ने कहा – यकिनन तुम जाहिल कौम हो, तुम ज़रूर पहले लोगो के तरीको पर चलोगे| (सही तिर्मिज़ी)
नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़िर कहा – अगर वो किसी गौह(रेगिस्तानी छिपकली) के बिल(सुराख) मे दाखिल होंगे तो तुम भी इस मे उनकी इत्तेबा करोगे| सहाबा रज़ि0 ने ताज्जुब की बिनाह पर कहा – या रसूल अल्लाह – क्या हम यहूद व नसारा की पैरवी करेंगे? तो आप सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया – और किस कि ! (सही बुखारी व मुस्लिम)
उपर जो हदीस गुज़री आज अल्लाह के रसूल सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम कि ये बात सच होती दिखाई देती हैं| आज मुसल्मान इन्सानो के अलावा जानवरो तक की इबादत कर रहा हैं और इसको करने मे फ़ख्र महसूस करता हैं| पाकिस्तान मे लाहौर मे घोड़े शाह की मज़ार इसका जीता जागता सबूत हैं|
जिहालत का आलम ये हैं की कब्रो पर कुब्बे और तकिये बनाये जाते हैं, झंडे निस्ब किये जाते हैं, गिलाफ़ चढ़ाये जाते हैं, सवाब की नियत से सफ़र किये जाते हैं, तवाफ़ किये जाते हैं, सजदे किये जाते हैं, इल्त्जाए की जाती हैं हांलाकि दीने इस्लाम मे नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने इन बिदअतो की बड़ी सख्ती से मज़म्मत करी हैं|
हज़रत आयशा रज़ि0 से रिवायत हैं जब नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम अपनी मर्ज़ मौत मे थे तो आप सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया – अल्लाह यहूद और नसारा पर लानत करे जिन्होने अपने अंबिया की कब्रो को इबादतगाह बना लिया| (बुखारी)
मज़ीद फ़रमाया के इस ख्याल से के आप की कब्र को सजदागाह न बना लिया जाये इसलिये औरो की तरह खुले मे आपकी कब्र नही रखी गयी बल्कि हुजरे मे रखी गयी|(बुखारी)
हज़रत जन्दब बिन अब्दुल्लाह से रिवायत हैं के नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने अपनी वफ़ात से 5 दिन पहले फ़रमाया – खबरदार तुम से पहले यहुदियों और नसरानीयो ने अंबिया और बुज़ुर्गो की कब्रो पर मस्जिद तामीर की| देखो मैं तुम को इससे मना करता हूँ| फ़िर बारगाहे इलाही मे दुआ की – या अल्लाह मेरी कब्र को बुतपरस्ती से बचा लेना| (मुसनद अहमद)
नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने एक और मौके पर फ़रमाया – यकीनन जब इन मे से कोई नेक आदमी मर जाता हैं तो वो इसकी कब्र पर मसजिद बना लेते और इस मे तस्वीर लटका देते| ये लोग कयामत वाले दिन अल्लाह के यहाँ बदतरिन मख्लूक शुमार होंगे| (मुस्लिम)
हज़रत अबुद्ल्लह इब्ने मसूद रज़ि0 से रिवायत हैं के मैनें अल्लाह के रसूल सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम को फ़रमाते सुना – लोगो मे बदतरीन शख्स वो हैं जिन पर कयामत कायम होगी और वो ज़िन्दा होंगे, और ऐसे लोग होंगे जो कब्रो को मस्जिद बनायेंगे| (बुखारी)
इमाम अहमद बिन हंबल ने हज़रत जैद बिन साबित रज़ि0 से ब्यान किया हैं के नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया – कब्रो पर ज़ियारत करने वाली औरतो पर, कब्रो पर मस्जिद बनाने वालो और कब्रो पर चिराग रोशन करने वालो पर अल्लाह की लानत हो|
इसी तरह 3 मुकद्दस मुकामो के अलावा किसी और मुकाम के लिये अकिदतमंदी(सफ़र करना) से मना कर दिया|
हज़रत अबू बक्र रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया – तीन मस्जिदो के अलावा और किसी मुकाम की तरफ़ ऐहतमाम के साथ सफ़र न करो| मस्जिद हराम, मस्जिद नबवी और मस्जिद अक्सा| (बुखारी)
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने इन औरतो को मलऊन करार दिया हैं जो कब्रो की ज़ियारत के लिये बकसरत जाती हो और इन को मस्जिद बनाती हैं और इन पर चिराग जलाती हैं|(सुनन तिर्मिज़ी)
हज़रत अबुल हयाज असदी रह0 ब्यान करते हैं के हज़रत अली रज़ि0 ने मुझ से फ़रमाया के उन्हें अल्लाह के रसूल सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने हुक्म दिया के – क्या मैं तुझ को इस काम पर मुकरर्र न करु जिस पर मुझे अल्लाह ने मुकरर्र किया और वो ये के कोई तस्वीर व मुजसमा न छोड़ मगर इसे मिटा दो और जो कब्रे ज़्यादा ऊंची हो इसे बराबर कर दो| (मुस्लिम)
हज़रत समामा बिन शफ़ी रज़ि0 से रिवायत हैं के हर कब्र जो शरीयत के ऐतबार से ऊंची हैं गिराना लाज़िमी हैं और फ़र्ज़ हैं| (सही मुस्लिम)
हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने कब्रो को चूना गच करने, इस पर बैठने और इस पर इमारत बनाने से मना किया हैं|(मुस्लिम)
अबू सईद खदरी रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने कब्रो पर इमारत बनाने, इन पर बैठने और नमाज़ पढ़ने से मना फ़रमाया|(इब्ने माजा)
अबू मूसा अशरी रज़ि0 ने मौत के वक्त वसीयत कि के जब तुम मेरा जनाज़ा लेकर चलने लगो तो जल्दी चलना, और मेरे साथ कोई अंगीठी हो और न मेरी लहद मे कोई चीज़ रखना जो मेरे और मिट्टी के दरम्यान हायल हो और न ही मेरी कब्र पर कोई इमारत बनाना और मैं तुम्हे गवाह बना कर कहता हू के मैं सर मुंडाने वाली, चीख-पुकार करने वाली या कपड़े फ़ाड़ने वाली से बरी हू| लोगो ने पूछा – क्या आपने ये बाते नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम से सुनी हैं? तो इन्होने कहा – हां मैंने नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम से सुनी हैं| (मुस्नद अहमद)
बिला शुबहा इन तमाम हदीस की रोशनी से ये साबित हैं के मौजूदा दौर मे जो दरगाहे या कब्रो को इबादत खाना बनाकर बुज़ुर्गो की जो इबादत होती हैं ये शरीयत इस्लाम की रूह से शिर्क हैं| आज मौजूदा मआशरे मे ना जाने कितने अनगिनत मज़ार हैं जिन पर गुम्बद बना कर या चार दीवारि बना कर उस मे इबादत करी जाती हैं और यही नही बल्कि उन कब्रो पर नज़्रो नियाज़, कव्वाली, उर्स होता हैं जो बाकायदा मेले की शक्ल मे होता हैं इसकी ज़िन्दा मिसाल पाकिस्तान मे पाकपत्तन के इलाके मे बाबा फ़रीद की दरगाह और हिन्दुस्तान के अजमेर मे मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह हैं| जिहालत की इन्तेहा तो ये हैं के मर्दो के साथ औरते भी लातादाद इन दरगाहो मे जाती हैं| जबकि इस्लाम की रूह से नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने ऐसी औरतो पर लानत फ़रमाई हैं|
कब्रपरस्ती को लेकर अकसर लोगो के ज़हनो मे ये गुमान होता हैं के जिस बुज़ुर्ग की कब्र पर जाकर वो इनसे हाजत तलब कर रहे हैं वो अपनी कब्र मे ज़िन्दा हैं| जबकि कुरान और हदीस की रोशनी मे मौत एक ऐसी सच्चाई हैं जो हर जानदार को आकर रहेगी और जो इन्सान मर कर दुनिया से रुखसत हो गया वो कभी वापस दुनिया मे नही लौटता| जबकि कब्रपरस्ती के अकीदतमंद ये अकीदा रखते है के नेक लोग मर कर भी अपनी कब्रो मे ज़िन्दा हैं बल्कि उनकी दुआ भी सुनते हैं और कुबूल भी करते हैं| अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं-
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मौत का फ़रिश्ता जो तुम्हारे उपर तैनात हैं वही तुम्हारी रुहे कब्ज़ करेगा उसके बाद तुम सबके सब अपने रब की तरफ़ लौटाये जाओगे| (सूरह अस सजदा 32/11)
और काश (ऐ रसूल) तुम देखते जब फ़रिश्ते काफ़िर की जान निकाल लेते थे और रूह और पुश्त(पीठ) पर कोड़े मारते थे और (कहते हैं तुम जलने के मज़े चखो| (सूरह अनफ़ाल 8/50)
तो जब फ़रिश्ते उनकी जान निकालेगे उस वक्त उनका क्या हाल होगा की उनके चेहरे पर और उनकी पुश्त पर मारते जाँएंगे| (सूरह मुहम्मद 47/27)
जब हमारे भेजे हुऐ (फ़रिश्ते) उनके पास आकर उनकी रूहे कब्ज़ करेंगें तो(उनसे) पूछेंगे कि तुम अल्लाह को छोड़कर जिन्हे पुकारा करते थे अब वो कहां हैं| तो वो जवाब देगें कि वह सब हमे छोड़ कर गायब हो गए और अपने खिलाफ़ खुद गवाही देगें कि वह बेशक काफ़िर थे| (सूरह आराफ़ 7/37)
ये तमाम कुरान की आयते ये साबित करती हैं के इन्सान की मौत होकर रहेगी और उसके जिस्मो मे मौजूद रुहे अल्लाह के हुक्म से मलकुलमौत के जरिये निकाली जायेगी| इन्सान का नेक या बद होना उसके दुनिया के अमल के मुताबिक होता हैं जब इन्सान मे अच्छे अमल करता हैं तो उसका नेक अमल दुनिया मे मशहूर होता हैं और लोग उससे फ़ायदा उठाते हैं| कब्रपरस्ती के ताल्लुक से लोग नेक लोगो कि कब्रो पर जाकर उनसे दुआ करते हैं जबकि मदद सिर्फ़ उससे मांगी जाती हैं जो मौजूद हो जिसको सुनाया जा सके जो किसी की परेशानी को महसूस कर सके| कब्रो की अकीदत रखने वाले लोग अकसर कब्रो पर जाकर उस मरे हुए से अल्लाह के यहा अपना सिफ़ारिशी समझते हैं और उन्से यूँ कहते हैं कि ऐ फ़ला बुज़ुर्ग अल्लाह से आप दुआ करदे के मेरा फ़ला काम हो जाये या मेरी फ़ला परेशानी दूर हो जाये| अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं-
बेशक न तो तुम मुर्दो को (अपनी बात) सुना सकते हो न बहरो को अपनी बात सुना सकते हो(खासकर) जब वो पीठ फ़ेर कर भाग खड़े हो| (सूरह नमल 27/80)
(ऐ रसूल) तुम तो (अपनी) आवाज़ न मुर्दो को सुना सकते हो और न बहरो को सुना सकते हो (खासकर) जब वह पीठ फ़ेरकर चले जाएँ| (सूरह रूम 30/52)
मुर्दा इन्सान जो दुनिया से रुखसत हो चुका हैं उसके ताल्लुक से ये साफ़तौर पर साबित हैं के उसको जिन्दा इन्सान की आवाज़ नही सुनाई नही देती तो फ़िर इन कब्रो पर जो फ़रियाद व पुकार होती हैं वो मुर्दा इन्सान कैसे सुन सकता हैं|
और अन्धा और आंख वाला बराबर नही हो सकते, अर न अन्धेरा और उजाला बराबर हैं, और न छांव और धूप, और न ज़िन्दे और न मुर्दे बराबर हो सकते हैं और खुदा जिसे चाहता हैं सुनाता हैं और ऐ रसूल तुम उनको नही सुना सकते जो कब्रो मे हैं| (सूरह फ़ातिर 35/19-22)
लोगो एक मिसाल पेश की जाती हैं उसे कान लगा के सुनो कि अल्लाह के अलावा जिन को तुम पुकारते हो वह सब के सब अगर एक साथ इकठ्ठे जमा हो जाये तो भी एक मक्खी तक पैदा नही कर सकते और अगर मक्खी उनसे कुछ छीन ले जाये तो उससे उसको छुड़ा नही सकते| बेबस हैं वो जिससे मांगा जा रहा हैं और जो मांग रहा हैं| (सूरह हज 22/73)
अल्लाह ने सूरह हज की आयत को एक मिसाल के तौर पर ब्यान किया हैं और कुरान की इस आयतो से साबित हैं के कब्रपरस्ती सरासर गलत हैं क्योकि जिन मुर्दो से इन्सान अपनी हाजते तलब कर रहा हैं वो मक्खी भी पैदा नही कर सकते और जो मक्खी जैसी एक छोटी से जान को पैदा नही कर सकता वो किसी इन्सान की मदद कैसे कर सकता हैं| लिहाज़ा जिन मुर्दो से दुआए और दरख्वास्त करी जा रही हैं अगर वो सब के सब जमा हो जाए तो मक्खी जैसी हकीर मख्लूक से कुछ छुड़ा भी नही सकते अगर मक्खी उनसे कुछ छीन ले तो ये इन्सानो की मदद या ज़रूरत कैसे पूरी कर सकते हैं| इसके अलावा अल्लाह कुरान मे और दूसरी जगह इस कब्रपरस्ती के ताल्लुक से फ़रमाता हैं-
वही रात को दिन मे दाखिल करता हैं और वही दिन को रात मे दाखिल करता हैं| उसी ने सूरज और चांद को इसी काम मे लगा रखा हैं और हर कोई अपने तयशुदा वक्त पर चला करता हैं| वही अल्लाह हैं तुम्हारा पालनेवाला और उसी की बादशाहत हैं और उसे छोड़कर जिन माबूदो को तुम पुकारते हो वह छुवारो की गुठली की झिल्ली के भी मालिक नही हैं, अगर तुम उन्हे पुकारो तो वह तुम्हारी को नही सुनेगे और अगर सुन भी ले तो तुम्हारी दुआए कुबूल भी नही कर सकते और कयामत के दिन तुम्हारे शिर्क क इन्कार कर बैठेगें| (सूरह फ़ातिर 35/13-14)
कुरान की इस आयत से साबित हैं के जिन बुज़ुर्गो की कब्रो पर लोग दुआए और हाजते तलब करते हैं वो बुज़ुर्ग न तो सुनते हैं न ही कोई हाजत पूरी कर सकते हैं और तो और रोज़ ए कयामत वो उन हाजत मांगने वालो के शिर्क का इन्कार कर देंगे| लिहाज़ा कब्रपरस्ती शिर्क और हराम हैं| और मज़ीद अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं-
(ऐ रसूल) आप कह दीजिये तुम अपने ठहराये हुए शरीको के बारे मे तो बताओ जिन्हे तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो यानि मुझे बताओ के उन्होने ज़मीन मे कौन सी चीज़ पैदा की हैं या आसमानो मे उनका कुछ साझा हैं| (सूरह फ़ातिर 35/40)
कुरान की इस आयत से साबित हैं के दुनिया से रुखसत होने वाले जिन बुज़ुर्गो को लोग अपना हाजतरवा समझते हैं न तो उन बुज़ुर्गो को किसी ने देखा हैं न ही उन्होने ज़मीन मे या आसमान मे कुछ पैदा किया हैं| लिहाज़ा जिन बुज़ुर्गो से दुआ और हाजते करी जाती हैं मरने के बाद उनका कुछ वजूद इस दुनिया मे नही बल्कि वो हमारी तरह आम बन्दे हैं| अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं-
अल्लाह को छोड़कर जिन लोगो को तुम पुकारते हो वह कुछ भी पैदा नही कर सकते, वह खुद बनाए हुए मुर्दे बेजान हैं और इतनी भी खबर नही कि कब कयामत होगी और कब उठाये जायेगे| (सूरह नहल 16/20,21)
अल्लाह ही के लिये सच्ची पुकार हैं और जो लोग उसे छोड़कर दूसरो को पुकारते हैं वह उनकी कुछ सुनते तक नही| (सूरह रअद 13/14)
क्या वह लोग अल्लाह का शरीक ऐसो को बनाते हैं जो कुछ भी पैदा नही कर सकते बल्कि वह खुद ही पैदा
क्या वह लोग अल्लाह का शरीक ऐसो को बनाते हैं जो कुछ भी पैदा नही कर सकते बल्कि वह खुद ही पैदा किये हुए हैं और वो इनकी किसी किस्म की मदद नही कर सकते और न अपनी मदद कर सकते हैं और अगर तुम उन्हे कोई बात बताने को पुकारो तो ये तुम्हारी पैरवी भी नही कर सकते चाहे तुम उन्हे पुकारो या चुपचाप बैठो रहो, बेशक वह लोग जिनको तुम अल्लाह को छोड़कर हाजतरवा समझते हो वह भी तुम्हारी तरह अल्लाह के बन्दे हैं| भला तुम उन्हे पुकार कर तो देखो| अगर तुम सच्चे हो तो वो तुम्हारी कुछ सुन ले, क्या उनके पैर भी हैं जो चल सके या उनके ऐसे हाथ भी हैं जिनसे वो किसी चीज़ को पकड़ सके या उनकी ऐसी आंखे भी हैं जिनसे वो देख सके या उनके ऐसे कान भी हैं जिनसे सुन भी सके| ऐ नबी आप कह दीजिए के तुम अपने बनाए हुए शरीको को बुलाओ फ़िर सब मिल कर मुझ पर दांव चले और मुझे मोहलत न दो| (सूरह आराफ़ 7/191-195)
और वो लोग जिन्हे तुम अल्लाह के सिवा अपनी मदद के लिये पुकारते हो न तो तुम्हारी मदद की कुदरत रखते हैं और न ही अपनी मदद कर सकते हैं और अगर तुम उन्हे हिदायत की तरफ़ बुलाओगे भी तो ये सुन ही नही सकते और तू समझता हैं की वो तुझे देख रहे हैं हालाकि वो देखते नही|(सूरह आराफ़ 7/197,198)
कुरान की इन आयतो मे अल्लाह ने कब्रपरस्ती जैसे शिर्क की मज़म्म्त करी हैं के लोग जान ले के जो लोग दुनिया से रुखसत हो गये हैं वो न किसी को कुछ दे सकते हैं न कोई खुद उनकी मदद कर सकत हैं अगर वो किसी परेशानी मे हो| ये मिसाल तो अल्लाह ने कुरान मे खुले तौर पर ब्यान करी हैं अब ज़रा दुनिया की मिसाल को देखते हैं
साल 2003 इराक़ अमरीका जंग के दौरान अमरीका की बमबारी के दौरान अब्दुल कादिर जिलानी रह0 की कब्र भी इन बमो की ज़द मे आई| उम्मत मुस्लिमा का एक बड़ा तबका इन्हे गौस पाक के नाम से बुलाता हैं और इनसे अपनी हाजते और मदद मांगता हैं और इन्हे मुश्किलकुशा और हाजतरवा समझता हैं| अगर अब्दुल कादीर जिलानी रह0 किसी की मदद कर सकते तो इन्हे इतनी भी तौफ़ीक न हुई के इराक पर अमरीका के ज़ुल्म सितम को रोक सके जिसमे मज़लूम आवाम का खून बह रहा हैं और तो और न वो किसी को बचा सके न अपनी कब्र जिसे लोगो ने इबादतगाह बना रखा हैं उसे बचा सके|
साल 2007 अक्तूबर 11 हिन्दुस्तान के अजमेर शहर मे ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की मज़ार पर एक बम धमाका हुआ था जिसमे 3 लोग मारे गये और 17 ज़ख्मी हुएथे| अगर ख्वाजा साहब कुछ देख सकते या सुन सकते या कुछ मरने के बाद भी इख्तयार रखते तो शायद मरने वालो और ज़ख्मी लोगो को बचा लेते लेकिन ऐसा नही हुआ क्योकि अल्लाह का दावा सच्चा हैं न कोई मुर्दा देख सकता हैं न सुन सकता हैं| अगर ख्वाजा साहब अपनी कब्र के अन्दर से लोगो की फ़रीयाद सुन सकते हैं और कब्र के अन्दर से ही मदद कर सकते हैं तो मरने के बाद इस बम धमाके को क्यो न रोक पाये और अपने मरने वाले और ज़ख्मी मुरीदो को क्यो न बचा सके|
साल 2010 अक्तूबर 25 पाकपत्तन, पाकिस्तान मे बाबा फ़रीद की दरगाह पर बम धमाका हुआ जिसके सबब उनके जन्नती दरवाज़े पर मौजूद 6-8 लोग मारे गये| अगर बाबा फ़रीद को हाजत पूरी करने का इख्तयार हैं तो उन्होने इस बम धमाके को कैसे होने दिया| अगर बाबा फ़रीद अपने मुरीदो की जान बचाने का भी इख्तयार नही तो वो हाजत पूरी कैसे कर सकते हैं|
ये वो दुनिया की मिसाले हैं जो कोई बहुत पुरानी किस्सा कहानी नही बल्कि चंद साल पहले हुए सच्ची बात हैं| ये अल्लाह का दावा हैं के अल्लाह की मर्ज़ी के बिना कोई मर नही सकता तो ये बुज़ुर्ग अपनी कब्रो मे कैसे ज़िन्दा हैं| अगर जिन्दा थे तो इस मुसीबत को क्यो न टाल सके|
आज दीन ए इस्लाम के जाहिल मौलवियो के सबब इन कब्रो पर कारोबारी अड्डा बना हुआ हैं लोग अपनी खून पसीने की कमाई इन बुज़ुर्गो की अकिदत मे कब्रो के मुजावरो को देते हैं के ये उनकी सिफ़ारिश कर दें और ये मुजावर आवाम को बेवकूफ़ बना कर लूट रही हैं और तो और आवाम को भी इस बात का शऊर नही के वो कलाम इलाही पर गौर करके अपनी मुसीबत को दूर कर ले|
बेशक हर चीज़ का खालिक व मालिक अल्लाह सुबहानोतालाह हैं अगर अल्लाह किसी परेशानी को टालना चाहे तो कोई कुछ नही कर सकता| अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं-
खुदा मुझ पर मेहरबानी करना चाहे तो क्या वह लोग उसकी मेहरबानी को रोक सकते हैं| (ऐ रसूल) तुम कहो की मेरे लिये अल्लाह ही काफ़ी हैं उसी पेर भरोसा करने वाले भरोसा करते हैं| (सूरह ज़ुमर 39/38)
लिहाज़ा हर इन्सान को चाहिए के अल्लाह पर भरोसा करे और उसी से मदद मांगे|
लोगो का ये गुमान के जो लोग नेक होते हैं और अपनी कब्रो मे ज़िन्दा हैं| इस बारे मे अकसर कुरान की ये दलील देते हैं कि-
और जो लोग अल्लाह की राह मे मारे गये उन्हे मुर्दा न सम्झो बल्कि वो ज़िन्दा हैं मगर तुम्हे शऊर नही|(सूरह अल बकरा 2/169)
और जो लोग अल्लाह की राह मे शहीद किये गये उन्हे मुर्दा न समझो बल्कि वो ज़िन्दा हैं और अपने रब के पास रोज़ी पा रहे हैं|(सूरह अल इमरान 3/169)
इस दोनो आयतो के शुरुआत मे ही अल्लाह ने फ़रमा दिया “जो लोग अल्लाह की राह मे मारे गये और शहीद किये गये” लिहाज़ा जो नेक लोग अल्लाह की राह मे मारे गये या शहीद किये गये यानि की वो मर चुके| क्योकि शहीद कोई शख्स मरने के बाद ही होता हैं बिना मरे कोई इन्सान शहीद के दर्जे को नही पहुंच सकता| इन आयतो का दूसरा हिस्सा ये बताता हैं के “तुम्हे शऊर नही और वो अल्लाह के पास रोज़ी पा रहे हैं” यानि वो जिस तरह ज़िन्दा हैं हमे उनकी ज़िन्दगीयो के बारे मे कुछ नही पता| जिस तरह इन्सान जब अपने मां के पेट मे होता हैं और अल्लाह उसे वहा भी रोज़ी देता हैं पर न तो दुनिया मे आने ले बाद किसी इन्सान को उस ज़िन्दगी का शऊर होता हैं न ही उसे ये पता होता हैं के वो किस तरह वहा रोज़ी पा रहा होता हैं ठीक उसी तरह नेक लोगो के मरने के बाद की ज़िन्दगी या शहीद होने वालो की ज़िन्दगी का हमे कुछ पता नही| मज़ीद अल्लाह ने कुरान मे फ़रमाया –
आग हैं जिसके सामने वो लोग सुबह व शाम लाये जाते हैं और जिस दिन कयामत बरपा होगी (फ़रमान होगा) फ़िरओन को सख्त अज़ाब मे डालो|(सूरह मोमिन 40/46)
गौर तलब हैं के यहा अल्लाह फ़िरओन और उसके लोगो के बारे मे बता रहा हैं जबकि फ़िरओन की लाश म्यूज़ियम मे आज तक मौजूद हैं न के कब्र में जबकि अल्लाह फ़रमा रहा हैं की फ़िरओन और उसके लोगो को सुबह शाम आग के सामने खड़ा किया जाता हैं तो जिस तरह फ़िरओन को ये मामला उसकी इस दुनिया की ज़िन्दगी के बाद पेश आ रहा हैं उसी तरह नेक लोगो के साथ अल्लाह का ये मामला हैं की अल्लाह उन्हे अपने तरीके से रोज़ी दे रहा हैं न हमे फ़िरओन के साथ इस मामले के बारे मे पता न ही किसी नेक शख्स के बारे मे पता के उसके साथ कैसे मामला पेश हो रहा हैं| मज़ीद ये के खुद नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम के बारे मे अल्लाह ने कुरान मे फ़रमाया-
और मुहम्मद तो बस रसूल हैं इनसे पहले भी बहुत से रसूल गुज़र चुके हैं फ़िर क्या अगर मुहम्मद मर जाये या कत्ल कर दिये जाये तो तुम क्या इस्लाम से उल्टे पांव फ़िर जाओगे तो समझ लो जो कोई उल्टे पांव फ़िर जायेगा तो अल्लाह का कुछ न बिगड़ेगा और जल्द अल्लाह शुक्र अदा करने वालो को अच्छा बदला देगा| (सूरह अल इमरान सूरह नं0 3 – आयत नं0 144)
(ऐ रसूल) बेशक़ तुम को भी मौत आयेगी और ये लोग भी यकीनन मरने वाले हैं|(सूरह ज़ुमर 39/30)
इन दो आयतो मे अल्लाह ने साफ़ तौर पर वाज़े कर दिया के खुद मुहम्मद सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम भी इस दुनिया की ज़िन्दगी को छोड़ के मर जायेगें| तो जब अल्लाह के सबसे प्यारे रसूल को मौत आ सकती हैं तो आम इन्सान की क्या हैसियत के वो मरने के बाद भी कब्र मे ज़िन्दा हो और ज़िन्दा होने के साथ-साथ लोगो की हाजते और ज़रुरते भी पूरी कर रहा हैं|
लिहज़ा कुरान और हदीस की रोशनी मे ये बात साफ़ हैं के कब्रपरस्ती शिर्क हैं और इसे करने वाला शख्स मुसलमान नही हो सकता क्योकि जिसने अल्लाह के सिवाये किसी और को माबूद बना कर उससे हाजते और ज़रुरते तलब करी वो मुसल्मान कैसे हो सकता हैं???